नमस्कार दोस्तों,
इस ब्लॉग पोस्ट में हम लेखांकन शब्दावली (Accounting Terminology) के उन प्रमुख शब्दों को जानेंगे जो आपके वित्तीय विश्लेषण और प्रबंधन (Financial Analysis and Management) की समझ को बेहतर बनाने में सहायक सिद्ध होंगे। हम चर्चा करेंगे कि प्रत्येक शब्द का क्या महत्व है, और कैसे ये टर्म्स आपके व्यवसायिक निर्णयों और वित्तीय प्रबंधन को प्रभावित कर सकते हैं। चाहे आप एक छात्र हो या उद्यमी, इस लेख में दी गई जानकारी आपके लेखांकन कौशल को एक नई ऊँचाई पर ले जाने में मदद करेगी। तो चलिए, लेखांकन शब्दावली (Accounting Terminology) की मुख्य बातों को जानते हैं।
नोट – Tally Prime सीरीज का यह दूसरा आर्टिकल है, टैली प्राइम के कम्प्लीट आर्टिकल आप इस लिंक Complete Tally Series पर क्लिक करके पा सकते हैं।
लेखांकन शब्दावली (Accounting Terminology)
जब हम व्यापार और वित्त के क्षेत्र में गहराई से उतरते हैं, तो व्यापारिक भाषा या लेखांकन शब्दावली का ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। लेखांकन की दुनिया में हर शब्द और टर्म एक विशिष्ट अर्थ और भूमिका निभाते हैं, जो वित्तीय रिपोर्टिंग, बजटिंग, और आर्थिक निर्णयों के सही प्रबंधन के लिए आवश्यक हैं। लेखांकन शब्दावली न केवल वित्तीय जानकारियों को समझने में मदद करती है, बल्कि यह व्यवसायिक संवाद को भी प्रभावी और सटीक बनाती है। आइए Accounting Terminology की शुरुआत व्यापार से ही शुरू करते हैं।
1. व्यापार (Business)
व्यापार, वस्तुओं या सेवाओं का क्रय-विक्रय है, जो मुद्रा या अन्य वस्तुओं के बदले में किया जाता है। यह एक आर्थिक गतिविधि है जो समाज में मूल्य प्रदान करती है और लोगों की ज़रूरतों को पूरा करती है।
व्यापार विभिन्न रूपों में हो सकता है, जैसे:
- अमूर्त सेवाओं का क्रय-विक्रय, जैसे कि सलाह, शिक्षा या मनोरंजन।
- माल का क्रय-विक्रय जैसे कपड़ा, खाद्य वस्तुएं, सोना-चांदी।
2. वित्तीय वर्ष (Financial Year)
वित्तीय वर्ष एक निश्चित कार्यकाल होता है जिसके दौरान वित्तीय लेनदेन का हिसाब-किताब रखा जाता है। यह आमतौर पर एक साल की अवधि होती है, लेकिन कुछ मामलों में यह इससे कम या ज्यादा भी हो सकती है। भारत में, वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शुरू होता है और 31 मार्च को समाप्त होता है। इसका मतलब है कि यदि व्यापारिक लेखा-जोखा 1 अप्रैल 2024 को शुरू होगा तो 31 मार्च 2025 को समाप्त होगा।
3. मालिक (Proprietor)
वह व्यक्ति जिसने कंपनी या व्यापार को खड़ा किया, जिसके पास व्यापार से जुड़े सभी अधिकार होते है तथा व्यापार के सभी जोखिम वहन करता है मालिक (Proprietor) कहलाता है।
4. पूँजी (Capital)
किसी भी व्यवसाय को आरंम्भ करने के लिए कुछ निवेश (Investment) की आवश्यकता होती है, जिससे व्यापार मे प्रयोग की जाने वाली जरूरी संम्पत्तियाँ तथा माल की खरीद-फरोख्त हो सके। यही निवेश पूंजी (Capital) कहलाती है।
पूंजी के प्रकार:
- अनुदान पूंजी – यह वह पूंजी है जो सरकारों या गैर-लाभकारी संगठनों द्वारा व्यवसायों को प्रदान की जाती है।
- स्वामित्व पूंजी – यह वह पूंजी है जो व्यवसाय के मालिकों द्वारा प्रदान की जाती है।
- ऋण पूंजी – यह वह पूंजी है जो व्यवसायों द्वारा बैंकों या अन्य वित्तीय संस्थानों से उधार ली जाती है।
5. सौदा (Transaction)
दो या दो से अधिक व्यापारियों के बीच लाभ कमाने के उद्देश्य से माल या सर्विसेस को खरीदना/बेचना सौदा (Transaction) कहलाता है। सौदे दो प्रकार के होते है।
- Cash Transaction (नगद सौदा) – वे ट्रैन्ज़ैक्शन जो नगद किए जाते है उन्हे Cash Transaction कहा जाता है।
- Credit Transaction (उधार सौदा) – वे ट्रैन्ज़ैक्शन जो उधार किए जाते है उन्हे Credit Transaction कहा जाता है।
6. क्रय (Purchase)
व्यापार मे जब किसी दूसरे व्यापारी (Supplier) से माल/सर्विस खरीदा जाता है, तो यह क्रय (Purchase) कहलाता है।
7. विक्रय (Sale)
व्यापार में जब किसी दूसरे व्यापारी (Customer) को माल/सर्विस बेचा जाता है, तो यह विक्रय (Sales) कहलाता है।
8. खरीदा माल वापस (Purchase Return)
जब व्यापार मे खरीदा माल सप्लायर पार्टी (Supplier Party) को वापस लौटाया जाता है, तो यह पर्चेज रिटर्न (Purchase Return) कहलाता है।
9. बिका माल वापस (Sales Return)
जब व्यापार मे बिका माल कस्टमर पार्टी (Customer Party) के द्वारा वापस लौटाया जाता है, तो यह सेल्स रिटर्न (Sales Return) कहलाता है
10. लेनदार (Debtor)
जब व्यापार मे किसी व्यापारी (Customer) को उधार माल या सेर्विसेस बेची जाती है, तो ऐसे व्यापारी Debtor पार्टी कहलाती है ।
11. देनदार (Creditor)
जब व्यापार मे किसी व्यापारी (Supplier) से उधार माल या सेर्विसेस खरीदी जाती है, तो ऐसे व्यापारी Creditor पार्टी कहलाती है ।
12. आहरण (Drawing)
जब व्यापार मे मालिक द्वारा स्वयं खर्चे के लिए धन या माल की निकासी की जाती है, तो यह आहरण (Drawing) कहलाता है।
13. ह्रास (Depreciation)
व्यापार मे संम्पत्तियो के इस्तेमाल होने से उनके मूल्यों मे आई गिरावट को ह्रास (Depreciation) कहा जाता है। यह किसी संपत्ति के मूल्य में समय के साथ होने वाली कमी को दर्शाता है, यह कमी उपयोग, क्षरण, या अप्रचलन के कारण हो सकती है।
14. ऋण (Loan)
लोन, जिसे ऋण भी कहा जाता है, एक वित्तीय लेनदेन है जिसमें एक ऋणदाता किसी उधारकर्ता को धन प्रदान करता है। जिसे उधारकर्ता को ब्याज सहित एक निश्चित समय अवधि में वापस करना होता है।
लोन मुख्य रूप से दो प्रकार से लिया/दिया जाता हैं –
- सुरक्षित ऋण (Secured Loan) – किसी संपत्ति को गिरवी रखकर लिया गया कर्ज Secured Loan कहलाता है। पार्टी के द्वारा लोन वापस न करने पर गिरवी रखी गई संपत्ति से भरपाई की जाती है।
- असुरक्षित ऋण (Unsecured Loan) – बिना किसी संपत्ति को गिरवी रखे, या व्यवहार में लिया गया कर्ज Unsecured Loan कहलाता है। पार्टी के द्वारा लोन वापस न करने पर भरपाई नहीं की जा सकती है, इसलिए इसे असुरक्षित ऋण कहते है।
15. दाईत्व (Liability)
Liability, जिसे हिंदी में देयता या जिम्मेदारी के रूप में जाना जाता है। दाईत्व का अर्थ उस धनराशि या संपत्ति से है, जिसकी एक निश्चित समय पर अदायगी करनी होती है। यह निम्न प्रकार के होते हैं
- धन: ऋण, बकाया राशि, या क्षतिपूर्ति का भुगतान।
- सेवाएं: किसी कार्य को पूरा करने या किसी दायित्व को निभाने का दायित्व।
- उत्पाद: किसी उत्पाद में दोष के कारण होने वाली क्षति या चोट के लिए मुआवजा देने का दायित्व।
यह दायित्व कई रूपों में हो सकता है, जैसे:
- Current Liability (चालू दाईत्व) – इस प्रकार के दाईत्व की अदायगी कम से कम समय होती है। Ex- Bank Over Draft, Tax Payable, Bill Payable etc.
- Long Term Lability (लंबी अवधि दाईत्व) – इस प्रकार के दाईत्व लंबे समय के लिए या जिनकी अदायगी 1 वर्ष के बाद करनी होती है। Ex- Long Term Bank Loan, Debenture etc.
16. आय (Income)
व्यापार में आय से तात्पर्य उस धनराशि से है जो किसी व्यवसाय द्वारा माल या सेवाओं को बेचने के बदले में प्राप्त की जाती है। इसे राजस्व (Revenue) या टर्नओवर (Turn Over) भी कहा जाता है। आय का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना और लाभ प्राप्त करना होता है। आय के निम्न प्रकार हो सकते हैं:
- विक्रय आय: उत्पादों या सेवाओं की बिक्री से प्राप्त धनराशि।
- ब्याज आय: यदि व्यवसाय ने कहीं निवेश किया है, तो उस निवेश पर प्राप्त ब्याज।
- किराया आय: यदि व्यवसाय के पास कोई संपत्ति है जिसे किराए पर दिया गया है, तो उससे प्राप्त किराया।
- अन्य आय: किसी भी अन्य स्रोत से प्राप्त धनराशि, जैसे रॉयल्टी, कमीशन आदि।
व्यापार में आय का सही प्रबंधन व्यवसाय की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होता है। आय का विश्लेषण करके व्यवसाय अपनी भविष्य की योजनाएँ और रणनीतियाँ तय कर सकता है। आय मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है।
- प्रत्यक्ष आय (Direct Income) – इस प्रकार की आय व्यापार के मुख्य श्रोतों से प्राप्त होती है। जैसे माल या सर्विस की बिक्री।
- अप्रत्यक्ष आय (Indirect Income) – इस प्रकार कि आय व्यापार में अन्य श्रोतों से प्राप्त होती है। कमीशन, रॉयलिटी, निवेश।
17. खर्चे (Expenses)
व्यापारिक खर्चे वे लागतें (Costs) होती हैं जो किसी व्यवसाय को चलाने के लिए आवश्यक होती हैं। ये खर्चे विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं और व्यापार के विभिन्न पहलुओं से संबंधित हो सकते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख व्यापारिक खर्चों की सूची दी गई है:
- प्रत्यक्ष खर्चे (Direct Expenses):
- कच्चे माल की लागत: उत्पाद बनाने के लिए आवश्यक कच्चे माल की कीमत व भाड़ा, मजदूरी आदि।
- उत्पादन लागत: कोयला, बिजली, डीजल आदि।
- अप्रत्यक्ष खर्चे (Indirect Expenses):
- प्रशासनिक खर्चे: ऑफिस के संचालन, प्रशासनिक कर्मचारियों के वेतन, स्टेशनरी, और अन्य कार्यालयी खर्चे।
- विपणन और विज्ञापन खर्चे: उत्पाद या सेवाओं के प्रचार और विपणन पर खर्च की जाने वाली राशि।
- बिक्री और वितरण खर्चे: उत्पादों को ग्राहकों तक पहुँचाने में होने वाले खर्चे।
- परिचालन खर्चे (Operating Expenses): बिजली, पानी और किराया।
- अन्य व्यय (Other Expenses): व्यापारिक बीमा, स्वास्थ्य बीमा, और अन्य प्रकार के बीमा प्रीमियम।
18. लाभ (Profit)
व्यापार मे जब आय खर्चों से अधिक होती है, तो लाभ होता है। लाभ को दो भागों मे विभाजित किया जाता है –
- सकल लाभ (Gross profit) – कुल आय मे से माल की कीमत और उन पर होने वाले प्रत्यक्ष खर्चों (Direct Expenses) को घटाने के पश्चात जो धनराशि शेष रहती है, उसे सकल लाभ (Gross Profit) कहते है।
- शुद्ध लाभ (Net Profit) – कुल सकल लाभ (Gross Profit) मे से व्यापार के अन्य सभी अप्रत्यक्ष खर्चों (Indirect Expenses) को घटाने के पश्चात शेष बची धनराशि को शुद्ध लाभ (Net Profit) कहते है।
19. हानि (Loss)
व्यापार मे जब खर्चे आय से अधिक होते हैं, तो हानि होती है। हानि को दो भागों मे विभाजित किया जाता है –
- सकल हानि (Gross Loss) – अगर खर्चे अधिक है और आय कम है, तो प्रत्यक्ष खर्चों (Direct Expenses) मे से कुल आय को घटाने के बाद की धनराशि सकल हानि (Gross loss ) कहलाती है।
- शुद्ध हानि (Nett Loss) – सकल हानि (Gross Loss) मे अन्य अप्रत्यक्ष खर्चों (Indirect Expenses) को जोड़ने के बाद की धनराशि को शुद्ध हानि (Net Loss) कहते है।
20. माल (Goods)
व्यापार मे माल शब्द का प्रयोग किसी वस्तु या संपत्ति के लिए किया जाता है, जिसे व्यापार में नियमित तौर पर खरीदा और बेचा जाता हैं। उदाहरण के लिए एक किराना की दुकान में साबुन, तेल,चीनी आदि सभी माल (Goods) हैं तथा एक जूलरी की दुकान मे सोने-चांदी के आभूषण माल है।
21. स्टॉक (Stock)
व्यापार मे स्टॉक से तात्पर्य उन वस्तुओं और सामग्री से है, जो किसी व्यवसाय द्वारा बिक्री के उद्देश्य से रखी जाती हैं। स्टॉक में विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ शामिल हो सकती हैं; जैसे कि तैयार माल, अर्धनिर्मित माल, और कच्चा माल। स्टॉक को प्रायः ओपनिंग स्टॉक (Opening Stock) तथा क्लोज़िंग स्टॉक (Closing Stock) मे विभाजित किया जाता है।
ओपनिंग स्टॉक और क्लोजिंग स्टॉक व्यवसाय की इन्वेंटरी के महत्वपूर्ण घटक होते हैं। इन्हें व्यापारिक स्टॉक के आरंभ और समाप्ति का संकेतक माना जाता है, और ये किसी भी वित्तीय अवधि (जैसे वित्तीय वर्ष, तिमाही, या महीने) के दौरान व्यापारिक गतिविधियों को समझने में मदद करते हैं।
- ओपनिंग स्टॉक (Opening Stock):
- ओपनिंग स्टॉक से तात्पर्य उस इन्वेंटरी से है जो किसी वित्तीय अवधि के आरंभ में व्यवसाय के पास होती है। यह पिछली अवधि के अंत का क्लोजिंग स्टॉक ही होता है। उदाहरण के लिए, यदि आप अप्रैल से मार्च तक के वित्तीय वर्ष को देखते हैं, तो 1 अप्रैल को जो स्टॉक उपलब्ध होता है, वह ओपनिंग स्टॉक कहलाता है।
- ओपनिंग स्टॉक को वित्तीय रिपोर्ट में दर्शाया जाता है और यह उत्पादन और बिक्री की योजना बनाने में मदद करता है।
- क्लोजिंग स्टॉक (Closing Stock):
- क्लोजिंग स्टॉक से तात्पर्य उस इन्वेंटरी से है जो किसी वित्तीय अवधि के अंत में व्यवसाय के पास होती है। यह ओपनिंग स्टॉक, खरीद, उत्पादन और बिक्री के आधार पर परिवर्तित होता है। उदाहरण के लिए, 31 मार्च को जो स्टॉक उपलब्ध होता है, वह क्लोजिंग स्टॉक कहलाता है।
- क्लोजिंग स्टॉक को वित्तीय रिपोर्ट में दर्शाया जाता है और यह अगले वित्तीय अवधि के ओपनिंग स्टॉक के रूप में उपयोग किया जाता है।
22. बैलेंस (Balance)
व्यापार में बैलेंस का तात्पर्य उस धनराशि से है जो किसी विशिष्ट खाते में किसी वित्तीय अवधि के आरंभ या अंत में उपलब्ध होती है। यह राशि विभिन्न प्रकार के खातों में हो सकती है, जैसे कि नकद खाता, बैंक खाता, ग्राहक खाता, सप्लायर खाता आदि। बैलेंस को दो भागों मे विभाजित करते हैं।
ओपनिंग बैलेंस (Opening Balance) – ओपनिंग बैलेंस से तात्पर्य किसी वित्तीय अवधि की शुरुआत में किसी खाते में मौजूद धनराशि से है। यह बैलेंस पिछले वित्तीय अवधि के अंत में उस खाते में मौजूद क्लोजिंग बैलेंस के बराबर होता है।
उदाहरण:
- यदि किसी व्यवसाय का वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च है, तो 1 अप्रैल को किसी खाते में जो राशि होती है, वह ओपनिंग बैलेंस कहलाती है।
- मान लीजिए कि 31 मार्च को आपके बैंक खाते में ₹50,000 हैं, तो 1 अप्रैल को यह ₹50,000 ही उस खाते का ओपनिंग बैलेंस होगा।
क्लोजिंग बैलेंस (Closing Balance) – क्लोजिंग बैलेंस से तात्पर्य किसी वित्तीय अवधि के अंत में किसी खाते में मौजूद धनराशि से है। यह बैलेंस ओपनिंग बैलेंस, उस अवधि में की गई सभी लेन-देन (क्रेडिट और डेबिट) के आधार पर निर्धारित होता है।
उदाहरण:
- यदि किसी व्यवसाय का वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च है, तो 31 मार्च को किसी खाते में जो राशि होती है, वह क्लोजिंग बैलेंस कहलाती है।
- मान लीजिए कि 1 अप्रैल को आपके बैंक खाते का ओपनिंग बैलेंस ₹50,000 था और पूरे साल में कुल ₹30,000 जमा हुए और ₹20,000 निकाले गए, तो 31 मार्च को आपके खाते का क्लोजिंग बैलेंस ₹60,000 होगा।
23. संपत्तियाँ (Assets)
व्यापार में संपत्तियाँ (Assets) वे संसाधन या वस्तुएँ होती हैं जिनका स्वामित्व व्यवसाय के पास होता है और जिनसे भविष्य में आर्थिक लाभ प्राप्त होने की संभावना होती है। संपत्तियाँ विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं और इन्हें मुख्यतः दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। स्थायी संपत्तियाँ (Fixed Assets) और चालू संपत्तियाँ (Current Assets)।
- स्थायी संपत्तियाँ (Fixed Assets) – ये वे संपत्तियाँ होती हैं जो लंबे समय तक उपयोग में लाई जाती हैं और जिनका उपयोग व्यवसाय के संचालन में किया जाता है। इनमें शामिल हैं: उदाहरण – भवन और भूमि, मशीनरी और उपकरण, फर्नीचर और फिक्स्चर, वाहन, पेटेंट, ट्रेडमार्क, लाइसेंस आदि।
- चालू संपत्तियाँ (Current Assets) – ये वे संपत्तियाँ होती हैं जिनकी कीमत कम समय मे घटती-बढ़ती रहती है। ऐसी संपत्तियाँ बेचने और लाभ कमाने के उद्देश्य से खरीदी जाती हैं। इनमें शामिल हैं: नकदी और बैंक बैलेंस, लेनदारों से प्राप्तियाँ, बिक्री के लिए उपलब्ध माल, अर्धनिर्मित माल और कच्चा माल, अग्रिम भुगतान, अल्पकालिक शेयर और निवेश आदि।
24. निवेश (Investment)
निवेश (Investment) से तात्पर्य उन संसाधनों या धनराशि को किसी विशेष संपत्ति, परियोजना, या वित्तीय साधन में लगाने से है, जिसका उद्देश्य भविष्य में आर्थिक लाभ प्राप्त करना होता है। निवेश विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं और उन्हें विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है, जैसे कि शेयर, बांड, रियल एस्टेट, व्यवसाय आदि।
25. प्रावधान (Provision) | Accounting Terminology
प्रावधान एक वित्तीय शब्द है जिसका तात्पर्य उन धनराशियों से है जो किसी भविष्य की संभावित खर्च या हानि (जैसे – माल की हानि, खराब ऋण हानि आदि) को कवर करने के लिए एक संगठन के खातों में निर्धारित की जाती हैं। ये भविष्य में होने वाले खर्चे या हानियों के लिए एक पूर्वानुमानित राशि होती है और इन्हें संगठन के बजट या लेखा-जोखा में शामिल किया जाता है।
26. बैंक ओवर ड्राफ्ट (Bank Over Draft)
बैंक ओवरड्राफ्ट (Bank Overdraft) एक प्रकार की वित्तीय सुविधा है जो एक बैंक खाताधारक को उसके खाते में उपलब्ध राशि से अधिक धन निकालने की अनुमति देती है। यह सुविधा आमतौर पर उन खातों के लिए उपलब्ध होती है जिनमें नियमित रूप से लेन-देन होते हैं और जिनके पास एक अच्छा क्रेडिट इतिहास होता है।
27. ब्याज (Interest)
ब्याज एक ऐसा शुल्क है जो कर्ज के रूप में दी गई धनराशि पर अर्जित किया जाता है। ये दो प्रकार के होते हैं।
- साधारण ब्याज (Simple Interest) – साधारण ब्याज उस ब्याज की राशि को संदर्भित करता है जो केवल मूलधन पर ही गणना की जाती है। इसमें ब्याज की गणना मूलधन, ब्याज दर, और समय के आधार पर की जाती है।
- संयुक्त ब्याज (Compound Interest) – संयुक्त ब्याज वह ब्याज होता है जो ब्याज के साथ मूलधन पर भी गणना की जाती है। इसमें ब्याज हर अवधि के बाद मूलधन में जोड़ दिया जाता है, और अगली अवधि के लिए ब्याज उसी बढ़े हुए राशि पर गणना की जाती है।
28. छूट (Discount)
व्यापार मे ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए माल की बिक्री पर छूट दी जाती है, यानि माल को वास्तविक कीमत से कम मे बेचा जाता है। छूट दो प्रकार की होती है-
- नगद छूट (Cash Discount) – यह छूट विशेष तौर पर किसी ग्राहक को नगद खरीददारी पर दी जा सकती है।
- व्यापारिक छूट (Trade Discount) – यह छूट थोक मे माल की बिक्री पर दी जाती है, इस छूट को रजिस्टर मे रिकार्ड नहीं किया जाता है।
29. बजट (Budget)
बजट (Budget) एक वित्तीय योजना होती है जो किसी विशेष अवधि के लिए आय और खर्चों का अनुमान लगाती है। यह एक संगठित तरीका है जिसका उपयोग व्यक्तिगत, व्यावसायिक, या सरकारी फंडों को व्यवस्थित और नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। बजट की प्रक्रिया में आमतौर पर अनुमानित आय और खर्चों का विवरण होता है, और यह सुनिश्चित करता है कि खर्चे आय के भीतर रहें और वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
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निष्कर्ष
इस ब्लॉग पोस्ट में हमने लेखांकन की महत्वपूर्ण शब्दावली Accounting Terminology का विस्तृत अवलोकन किया है, जो आपके लिए एक मजबूत वित्तीय आधार तैयार करेगी। ये शब्द और अवधारणाएँ न केवल आपके लेखांकन कौशल को उन्नत करेंगी, बल्कि आपको अपने वित्तीय लक्ष्यों की ओर बेहतर ढंग से मार्गदर्शन भी करेंगी।
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